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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६६ | शावर तन्त्र शास्त्र www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्ध हो जायेगा । इसी प्रकार आत्मा पर लगे आवरणों को काटने का काम विभिन्न ग्रहों से प्राप्त शक्ति-तरंगें करती हैं। यूँ तो प्रत्येक ग्रह अपनी 'क्षमता और पृथ्वी से दूरी के आधार पर अपनी तरंगों से आत्माओं को प्रभावित करता है, परन्तु किसी ग्रह का विशेष प्रभाव लेने के लिए हम स्वयं अपनी शक्ति-तरंगें भेजकर उस ग्रह की प्रभाव शक्ति को किसी भी समय प्राप्त कर सकते हैं, चाहे वह ग्रह उस समय पृथ्वी के पास हो अथवा दूर । ग्रह से टकराकर लौटने वाली आत्मिक शक्ति की तरंगें बहुत कुछ तो इधर-उधर बिखर जाती हैं। बहुत थोड़ी तरंगें पृथ्वी तक आ पाती हैं, जो विभिन्न जीवों पर विकीर्णित होती हैं । परन्तु दूसरे जीव उसका लाभ स्पंदनांतर (Frequency Difference) के कारण नहीं ले पाते । प्रत्येक आत्मा की शक्ति उसके ऊपर आच्छादित आवरणों के आधार पर अलग-अलग प्रकार की होती है इसलिए प्रत्येक आत्मा से निकलने वाली तरंगों के स्पंदनों (Frequency) में अन्तर होता है । जिस फ्रीक्वेन्सी की आत्मा ने तरंगें प्रसारित की हैं कि उसी फक्विन्सी की आत्मा उन्हें पुनः ग्रहण कर सकती है, अन्य नहीं । यह एक विज्ञान सम्मत सिद्धान्त हैं । हमारे चारों और विभिन्न प्रकार की फ्रीक्वेन्सियों में कई प्रकार की तरंगें फैली हुई हैं। इन तरंगों को पकड़ने के लिए विभिन्न फोक्वेन्सी की वेवलेंग्थ की लम्बाई के एरियलों की आवश्यकता होती है । हमारे शरीर पर अलगअलग लम्बाई के बाल पाये जाते हैं, जो विभिन्न प्रकार के क्वार्टर लम्डा (^ / ४) हाफ लम्डा (112) ऐरियलों का काम करते हैं । तपस्वी लोग इन एरियलों के महत्व को समझते थे; अत: इन्हें प्राकृतिक आवश्यकता के अनुरूप ही बढ़ने देते थे, कटवाते नहीं थे। साथ ही तपस्या के समय सिर पर कपड़ा बाँधते थे, जिससे अर्जित ऊर्जा इधर-उधर बिखरें नहीं। आज भी उसी परम्परा में लोगों को आप धार्मिक कार्य करते समय सिर को कपड़े से ढके हुए देख सकते हैं हालांकि वे इसका वैज्ञानिक आशय नहीं समझते । तात्पर्य यह है कि ग्रह से लौटकर आने वाली तरंग हमारे बालों द्वारा आत्मा तक पहुंचती हैं और आत्मा पर आच्छादित कर्म बन्धनों के आवरणों को काटती हैं। ज्यों-ज्यों कर्मबन्धन कटते जाते हैं, व्यक्ति की आत्मिक शक्ति बढ़ती जाती है । यह बात तो हुई आध्यात्मिक मंत्रों की अब सांसारिक मंत्रों की बात सुनिये । प्रक्रिया बड़ी सरल है- अभी हम कहकर आये हैं कि इष्ट की मूर्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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