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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रारम्भिक ज्ञातव्य शाबर-मन्त्रों के विषय में जनश्र ति है कि कलियुग के आरम्भ होने पर देवाधिदेव महादेव शिवजी ने वेदोक्त मन्त्रों को कील दिया, जिसके कारण वे अप्रभावी हो गये; परन्तु यथार्थ में उनकी सामर्थ्य समाप्त नहीं हुई, केवल यही अन्तर पड़ा कि यदि उन्हें उत्कीलन-विधि से उत्कीलित कर दिया जाय तो वे अपना चमत्कार प्रदर्शित करने में समर्थ हो जाते हैं। मन्त्रों की उत्कीलन-विधि का ज्ञान बड़े विद्वानों तक ही सीमित था, अतः सामान्य मन्त्र-साधकों को उनके साधन में कठिनाइयाँ होने लगी। ऐसी स्थिति में कतिपय सिद्ध महापुरुषों द्वारा शावर-मन्त्रों की रचना की गई। ये मन्त्र लोक-भाषाओं में रचे गये थे और इन्हें सिद्ध करने हेतु उत्कीलनादि की प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता भी न थी, अतः ये बड़े लोकप्रिय हुए और इनका प्रचार-प्रसार भी खूब हुआ। ____ शावर-मन्त्रों के रचयिता सिद्ध-पुरुष ही रहे होंगे, इसमें तो सन्देह नहीं, परन्तु वे शास्त्रज्ञ अथवा विद्वानों की कोटि में रक्खे जाने के योग्य भी रहे हों, इस सम्बन्ध में अलग-अलग मत हैं। लिपिबद्ध न किये जाने के कारण ये मन्त्र गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से केवल कण्ठ-निवासी ही बने रहे । आरम्भ में बहुत समय तक विद्वानों को इनके महत्व का ज्ञान नहीं हो सका, परन्तु कालान्तर में इनका प्रभाव प्रकट होते हुए प्रत्यक्ष देखा गया, तो वे भी इनका महत्व स्वीकार करने को बाध्य हुए। फलतः इन मन्त्रों के संकलन का कार्य भी आगे बढ़ा। प्रस्तुत प्रकरण में मन्त्र-साधना सम्बन्धी प्रारम्भिक-ज्ञातव्य विषयों का उल्लेख किया जा रहा है । इनका सम्यक्-ज्ञान होने पर ही साधक को मन्त्र-साधन में सफलता प्राप्त हो सकती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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