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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शावर तन्त्र शास्त्र । १३७ भूतादि को बकराने का मन्त्र (२) मन्त्र (१)-"ॐ नमो भगवते भूतेश्वराय किल किल तर वाय, रुद्र द्रष्ट्राकराल वक्त्राय, त्रिनयन भीषणाय, धग(गत पिशंग ललाट नेत्राय, तीन कोपानलायामित तेजसे पाश शूल खड्ग डमरूक धनुर्वाण मुद्गर भूपदण्ड त्रास मुद्रा वेग दश दोर्दण्ड मण्डिताय, कपिल जटाजूट कूटाद्धं चन्द्र धारिणे भस्मि राग रंजित विग्रहाय, उग्रफणपति घटाटोप मंडित कण्ठ देशाय, जय जय भूत डामरस आत्म रूपं दर्शे दर्श निरते निरते सर सर चल चल पाशेन बंध बंध हुंकारेन त्रासय त्रासय वज्रदंडेन हन हन् निशिति खङ्गन छिन्ध छिन्ध शूलाग्रे भिन्ध भिन्ध मुद्गरण चूर्णय चूर्णय सर्व ग्रहाणां आवेशय आवेशय।" साधन एवं प्रयोग-विधि इस मन्त्र को पहले ग्रहण दीपावली की रात अथवा होली के दिन १००० की संख्या में जप कर सिद्ध कर लें । प्रयोग के समय गाय के घृत के गूगल, नीम को पत्तो तथा सर्प की केंचुल मिलाकर मन्त्र पढ़-पढ़ कर, बहुत सी धूप दें तथा उड़द पर मन्त्र पढ़-पढ़ कर रोगी की मारें तो भूत बकरने लगता है अथवा अपने विषय में यह बताने लगता है कि वह कौन है, क्यों और कहाँ से आया है आदि । इसके बाद 'नृसिंह मन्त्र' द्वारा भूत को रोगी के शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए। भूतादि को बकराने का मन्त्र (२) मन्त्र-“ॐ नमो आदेश गुरु को नारी जाया नाहरसिंह, अंजनी जाया हनुमंत, वाने जारी बीज भवंता, वा तोड़ी गढ़ लंका तेरी पाखरि कौन भरे, नाहरसिंह बलवंत वन में फिरे अकेलड़ा भंवर खिलायें केस बारो भाटी मध की For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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