SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ | शावर तन्त्र शास्त्र विशेष उक्त मन्त्र में जहाँ 'अमुकस्य' शब्द आया है, वहाँ शत्रु के नाम का उच्चारण करना चाहिए। साधन-विधि उक्त मन्त्रा ग्रहण, होली अथवा दिवाली की रात्रि में १०००० की संख्या में जपने से सिद्ध होता है। प्रयोग-विधि घृत तथा शहद की अग्नि में १००० आहतियाँ दें। प्रत्येक आहति देते समय उक्त मन्त्र का उच्चारण करें। फिर लोहे की ४ अंगुल की एक कील को उक्त मन्त्रा से अभिमन्त्रित कर श्मशान में गाढ़ दें तथा उसे गाढ़ते समय भी मन्त्रोच्चारण करें। इस प्रयोग से शत्रु का मुह बन्द हो जाता है। शत्रु-बुद्धि स्तम्भ मन्त्र मन्त्र---"ॐ नमो भगवते शत्रूणां बुद्धि स्तम्भनं कुरु-कुरु स्वाहा ।" साधन-विधि पूर्वोक्त मन्त्र के अनुसार। 'प्रयोग-विधि ऊँट की लीद को छाया में सुखाकर उसमें से १ रत्तीभर पान में रक्खें तथा उस पर १०८ बार मन्त्र पढ़ कर शत्रु को वह पान खिला दें तो वह बावला हो जाता है। शत्रु-मुख-स्तम्भन मन्त्र (१) मन्त्र-(१) "अलफ अलफ दुश्मन के मुंह में कुलफ मेरे हाथ ___ कुन्जी रूपा रेत कर, दुश्मन को जेर कर।" साधन-विधि किसी शनिवार से आरम्भ कर ७दिन-रात्रि में घृत का दीपक जला कर तथा फूल-बताशे चढ़ाकर, नित्य कपूर के १००० टुकड़ों को मन्त्र पढ़पढ़ कर, अग्नि में डालें तो मन्त्र सिद्ध हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy