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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रस्तावना ३१ १०. अष्टसहस्रोको प्रशस्ति में विद्यानन्दिने कुमारसेनका उल्लेख किया है। कुमारसेन ई० ७८३ के विद्वान् हैं, अतः विद्यानन्द उसके बादके हैं । ११. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिककी प्रशस्ति में निम्न पद्य आया है"जीयात्सज्जनताऽऽश्रयः शिव-सुधाधारावधानप्रभुः, ध्वस्तध्वान्तततिः समुन्नत गतिस्तोत्रप्रतापान्वितः । प्रोर्ज ज्योतिरिवावगाहन कृतानन्तस्थितिर्मानतः, सन्मार्गस्त्रियात्मकोऽखिलमलप्रज्वालनप्रक्षमः ॥ " प्रस्तुत पद्य में विद्यानन्दिने श्लेषसे शिवमार्ग मोक्षमार्ग तथा शिवमार द्वितीयका यशोगान किया है । शिवमार द्वितीय गंगवंशी श्रीपुरुष नरेशका उत्तराधिकारी तथा उसका पुत्र था जो ई० ८१० के लगभग राज्यका अधिकारी हुआ । इसने श्रवणबेलगोलाकी छोटी पहाड़ीपर एक बसदि बनवायी थी, जिसका नाम 'शिवमारन बसदि ' था | चन्द्रनाथ स्वामी बसदिके निकट एक चट्टानपर कनडी भाषा में 'शिवमारन बसदि ' यह अभिलेख अंकित है । इस अभिलेखका समय भाषालिपिज्ञानको दृष्टिसे लगभग ८१० माना जाता है ।" शिवमारने कुम्मडवाड में भी एक बसदि बनवायी थी। इन प्रसंगोंसे ज्ञात होता है कि शिवमार द्वितीय अपने - पिता श्रीपुरुषको ही तरह जैनधर्मका उत्कट समर्थक एवं प्रभावक था । विद्यानन्दिने श्लोकवातिकको रचना इसी काल में की होगी । ૨ १२. इस शिवमारका भतीजा और विजयादित्यका लड़का राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम शिवमारके राज्यका उत्तराधिकारी हुआ तथा ई० सन् ८१६ के आसपास राजगद्दीपर बैठा । विद्यानन्दिने अपने अन्य ग्रन्थों में इसका भी उल्लेख किया है [क] " स्थेयाज्जातजयध्वजाप्रतिनिधिः प्रोद्भूतभूरिप्रभुः, प्रध्वस्ताखिल-दुर्नय- द्विषदिभिः सन्नीतिसामर्थ्यतः । सन्मार्गस्त्रिविधः कुमार्गमथनोऽर्हन् वीरनाथः श्रिये, शश्वत्संस्तुतिगोचरोऽनवधियां श्रीसत्यवाक्याधिपः ॥ [ख] “प्रोक्तं युक्त्यनुशासनं विजयिभिः स्याद्वादमार्गानुगैविद्यानन्दबुधैरलङ्कृतमिदं श्री सत्यवाक्याधिपैः ॥ "" [ग] "जयन्ति निर्जिताशेष सर्वधैकान्तनीतयः । सत्यवाक्याधिपाः शश्वद्विद्यानन्दाः जिनेश्वराः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [घ] "विद्यानन्दः स्वशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिद्धये ।”७ उक्त प्रमाणोंके आधारपर विद्यानन्दिका समय ई० ७७५ से ८४० प्रमाणित होता है । १. शिलालेख : सं० २५६ । २. मिडियावल जैनिज्म : पृ० २४,२५ । ३. राइस - मेसूर और कुर्ग : पृ० ४१ । ४. युक्त्यनुशासनालंकारप्रशस्ति । ५. वही । ६. प्रमाणपरीक्षा मंगलाचरण | ७, आप्तपरीक्षा : श्लो० १२३ । For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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