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प्रस्तावना
व शैली में बौद्धचिन्तनको सविस्तर और सांगोपांग व्याख्या करनेवाला यह ग्रन्थ भारतीय दर्शनोंको महत्त्वपूर्ण
देन है ।
सत्यशासन-परीक्षा में विद्यानन्दिने प्रमाणवार्तिक में प्रतिपादित सिद्धान्तोंका खण्डन किया है। बौद्धशासन-परीक्षा के प्रसंग में प्रमाणरूपमें प्रमाणवार्तिकके निम्न वाक्य उद्धृत किये गये हैं१. “अभिप्रायनिवेदनादविसंवादनम् ।"
[ प्र० वा० १।३ ]
परमाणु प्रत्यक्षका विचार करते हुए निर्विकल्पक प्रत्यक्षको अविसंवादविकल होनेसे अप्रमाण बताया गया है, इसी प्रसंग में प्रमाणवार्तिक के एक पद्यका यह अन्तिम चरण उद्धृत किया है । २. "शुक्तौ वा रजताकारी रूपसादृश्यदर्शनात् ।। "
[१५] न्यायबिन्दु और सत्यशासन-परीक्षा
न्यायबिन्दु भी बौद्ध दार्शनिक आचार्य धर्मकीर्तिकी कृति है । सम्पूर्ण बौद्धन्यायका संक्षेपमें परिश्चम करा देनेवाला यह ग्रन्थ न्यायशास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । विद्यानन्दिने सत्यशासन-परीक्षा में न्यायबिन्दुका एक सूत्र उद्धृत किया है
"प्रत्यक्ष कल्पनापोढमभ्रान्तम् ।
[ न्यायवि० 918 ]
बौद्धशासन-परीक्षाके उत्तरपक्ष में परमाणुप्रत्यक्षका खण्डन करते हुए प्रसंगवश उपर्युक्त सूत्र उद्धृत
,?
हुआ है ।
[ १६ ] हेतुबिन्दुटीका और सत्यशासन - परीक्षा
हेतु बिन्दु प्रकरण बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्तिकी रचना है । इसीपर अर्चटने हेतुबिन्दुटीका नामक टीका लिखी । इसमें आयी हुई निम्नलिखित चार कारिकाएँ विद्यानन्दिने 'तदुक्तम्' कहकर मीमांसाशासन परीक्षा में उद्घृत की हैं-
" तादात्म्यं चेन्मतं जातेयं क्तिजन्मन्यजातता । नाशेऽनाशश्च केनेष्टस्तद्वञ्चानन्वयो न किम् ।। व्यक्तिजन्मन्यजाता चेदागता नाश्रयान्तरात् । प्रागासीन च तद्देशे सा तथा संगता कथम् || व्यक्तिनाशे न चेन्नष्टा गता व्यक्त्यन्तरं न च । तच्छून्ये न स्थिता देशे सा जातिः क्केति कथ्यताम् || व्यक्तेर्जात्यादियोगेऽपि यदि जातेः स नेष्यते । तादात्म्यं कथमिष्टं स्यादनुपप्लुतचेतसाम् ॥
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[१७] प्रमाणवार्तिकालंकार और सत्यशासन-परीक्षा
१. सत्य ० बौद्ध ० ६९
२. सत्य० बौद्ध० ६ ७
३. मीमा० ६ १०; हेतुबि० टी०, पृ० ३२
प्रमाणवार्तिकालंकार धर्मकीर्ति के प्रमाणवार्तिकपर लिखा गया संस्कृत भाष्यग्रन्थ है। इसके रचयिता प्रज्ञाकरगुप्तने धर्मकीर्ति द्वारा प्रमाणवार्तिक में चर्चित सभी मन्तव्योंका विस्तार के साथ विवेचन किया है । सत्यशासन-परीक्षा में विद्यानन्दिने विज्ञानाद्वैत- परीक्षा में प्रज्ञाकर गुप्त द्वारा चर्चित विज्ञानमात्रका विस्तारसे खण्डन किया है। निम्नलिखित अनुमान वाक्यको उद्धृत भी किया है
" सर्वे प्रत्ययाः निरालम्बनाः, प्रत्ययत्वात्
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