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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७ प्रस्तावना व शैली में बौद्धचिन्तनको सविस्तर और सांगोपांग व्याख्या करनेवाला यह ग्रन्थ भारतीय दर्शनोंको महत्त्वपूर्ण देन है । सत्यशासन-परीक्षा में विद्यानन्दिने प्रमाणवार्तिक में प्रतिपादित सिद्धान्तोंका खण्डन किया है। बौद्धशासन-परीक्षा के प्रसंग में प्रमाणरूपमें प्रमाणवार्तिकके निम्न वाक्य उद्धृत किये गये हैं१. “अभिप्रायनिवेदनादविसंवादनम् ।" [ प्र० वा० १।३ ] परमाणु प्रत्यक्षका विचार करते हुए निर्विकल्पक प्रत्यक्षको अविसंवादविकल होनेसे अप्रमाण बताया गया है, इसी प्रसंग में प्रमाणवार्तिक के एक पद्यका यह अन्तिम चरण उद्धृत किया है । २. "शुक्तौ वा रजताकारी रूपसादृश्यदर्शनात् ।। " [१५] न्यायबिन्दु और सत्यशासन-परीक्षा न्यायबिन्दु भी बौद्ध दार्शनिक आचार्य धर्मकीर्तिकी कृति है । सम्पूर्ण बौद्धन्यायका संक्षेपमें परिश्चम करा देनेवाला यह ग्रन्थ न्यायशास्त्र में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । विद्यानन्दिने सत्यशासन-परीक्षा में न्यायबिन्दुका एक सूत्र उद्धृत किया है "प्रत्यक्ष कल्पनापोढमभ्रान्तम् । [ न्यायवि० 918 ] बौद्धशासन-परीक्षाके उत्तरपक्ष में परमाणुप्रत्यक्षका खण्डन करते हुए प्रसंगवश उपर्युक्त सूत्र उद्धृत ,? हुआ है । [ १६ ] हेतुबिन्दुटीका और सत्यशासन - परीक्षा हेतु बिन्दु प्रकरण बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्तिकी रचना है । इसीपर अर्चटने हेतुबिन्दुटीका नामक टीका लिखी । इसमें आयी हुई निम्नलिखित चार कारिकाएँ विद्यानन्दिने 'तदुक्तम्' कहकर मीमांसाशासन परीक्षा में उद्घृत की हैं- " तादात्म्यं चेन्मतं जातेयं क्तिजन्मन्यजातता । नाशेऽनाशश्च केनेष्टस्तद्वञ्चानन्वयो न किम् ।। व्यक्तिजन्मन्यजाता चेदागता नाश्रयान्तरात् । प्रागासीन च तद्देशे सा तथा संगता कथम् || व्यक्तिनाशे न चेन्नष्टा गता व्यक्त्यन्तरं न च । तच्छून्ये न स्थिता देशे सा जातिः क्केति कथ्यताम् || व्यक्तेर्जात्यादियोगेऽपि यदि जातेः स नेष्यते । तादात्म्यं कथमिष्टं स्यादनुपप्लुतचेतसाम् ॥ 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१७] प्रमाणवार्तिकालंकार और सत्यशासन-परीक्षा १. सत्य ० बौद्ध ० ६९ २. सत्य० बौद्ध० ६ ७ ३. मीमा० ६ १०; हेतुबि० टी०, पृ० ३२ प्रमाणवार्तिकालंकार धर्मकीर्ति के प्रमाणवार्तिकपर लिखा गया संस्कृत भाष्यग्रन्थ है। इसके रचयिता प्रज्ञाकरगुप्तने धर्मकीर्ति द्वारा प्रमाणवार्तिक में चर्चित सभी मन्तव्योंका विस्तार के साथ विवेचन किया है । सत्यशासन-परीक्षा में विद्यानन्दिने विज्ञानाद्वैत- परीक्षा में प्रज्ञाकर गुप्त द्वारा चर्चित विज्ञानमात्रका विस्तारसे खण्डन किया है। निम्नलिखित अनुमान वाक्यको उद्धृत भी किया है " सर्वे प्रत्ययाः निरालम्बनाः, प्रत्ययत्वात् 9 For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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