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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना युक्त्यनुशासनका निम्न पद्य उद्धृत किया गया है १. "अनर्थिका साधनसाध्यधीश्चेद्विज्ञानमात्रस्य न हेतुसिद्धिः । अथार्थवत्वं व्यभिचारदोषो न योगिगम्यं परवादिसि [युक्त्यनु० श्लो० १८] [ख] चार्वाकशासनमें चार्वाकाभिमत सिद्धान्तोंका खण्डन करनेके बाद युक्त्यनुशासनके निम्नलिखित तीन पद्य उद्धृत हैं २. "मद्याङ्गवद्भूतसमागमे ज्ञः शक्त्यन्तरव्यक्तिरदेवसृष्टिः । इत्यात्मशिश्नोदरपुष्टितुष्टैनि-मयैर्हामृदवाः प्रलब्धाः ॥ ३. दृष्टे विशिष्टे जननादिहेतौ विशिष्टता का प्रति सत्त्वमेषाम् । स्वभावतः किं न परस्य सिद्धिरतावकानामपि हा प्रपातः।। ४. स्वच्छन्दवृत्तेर्जगतः स्वभावादुच्चैरनाचारपदेष्वदोषम् । निर्युष्य दीक्षा सममुक्तिमानास्त्वदृष्टिबाह्याः वत् विभ्रमन्ति ॥" [ग] बौद्धशासन-परीक्षामें स्वलक्षणके विवेचन प्रसंगमें युक्त्यनुशासनका निम्न पद्य आया है ५. "अवाच्यमित्यत्र च वाच्यमावादवाच्यमेवेत्य यथाप्रतिज्ञम् ।। स्वरूपतश्चेत् पररूपवाचि स्वरूपवाचीति वचो विरुद्धम् ॥" [युक्त्यनु० श्लो० २९] इसी परीक्षाके एक अन्य प्रसंगमें अविसंवादी ज्ञानको प्रमाणताका निरसन करते हुए निम्न पद्य आया है ६. "प्रत्यक्षबुद्धिः क्रमते न यत्र तल्लिङ्गगम्यं न तदर्थलिङ्गम् । वाचो न वा तद्विषयेण योगः का तद्गतिः कष्टमशृण्वतां ते॥" [युक्त्यनु० श्लो० २२] [घ ] वैशेषिकशासन परीक्षामें समवाय सम्बन्धके विषयमें विचार करते समय युक्त्यनुशासनका निम्न पद्य दो बार उद्धृत किया गया है ७. "अभेदभेदात्मकमर्थतत्त्वं तव स्वतन्त्रान्यतरत्खपुष्पम् । अवृत्तिमत्त्वात् समवायवृत्तेस्संसर्गहानेः सकलार्थहानिः ॥"" [युक्त्यनु० श्लो० ७ ] [४] न्यायविनिश्चय और सत्यशासन-परीक्षा न्यायविनिश्चय जैन न्यायके प्रस्थापक आचार्य भट्ट अकलंककी कृति है। धर्मकीर्ति के प्रमाणवातिककी तरह इस ग्रन्थको रचना गद्य-पद्यमें की गयी थी; किन्तु पूरा ग्रन्थ अभीतक उपलब्ध नहीं हुआ। पद्य भागपर वादिराजको न्यायविनिश्चयविवरण नामक टीका है; उसी टोकामें-से पद्योंका संकलन करके पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यने इसका सम्पादन किया था। विद्यानन्दिने अकलंकके सभी शास्त्रोंका अन्तःप्रविष्ट अध्ययन किया था तथा अपने साहित्यका उपजीव्य भी उन्हें बनाया; इसलिए विद्यानन्दिके ग्रन्थोंपर अकलंकके शास्त्रोंको छाप अस्वाभाविक नहीं है। १. सत्य विज्ञान०६११ २. सत्य. चार्वाक. १९ ३. सत्य० बौद्ध ० ६ ४१ ४. वही : १७ ५. सत्य० वैशे० ६ १८, २५ ६. मारतोय ज्ञानपीठ, काशी-द्वारा प्रकाशित । For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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