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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रस्तावना १७ सत्मशासन-परीक्षा में बन्ध के विषय में जैनदृष्टिको स्पष्ट करते हुए प्रकारान्तरसे उमास्वातिके सूत्रों को ही प्रस्तुत किया गया है । तुलनाके लिए देखें " स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्धः, न जघन्यगुणानाम्, गुणसाम्ये सदृशानाम्, धिकादिगुणानां तु । " דין [ तत्रार्थसू० अ० ५, सू० ३३-३६ ] "तैः ( स्याद्वादिभिः ) परमाणूनां स्निग्धरूक्षाणामजघन्यगुणानां द्वयधिकादिगुणानां विजातीयानां सजातीयानां च सतुतोयवत् सन्तप्तजतुखण्डवत् कथंचित् स्कन्धाकारपरिणामात्मकस्य संबन्ध - स्याभ्युपगमात् www.kobatirth.org [२] आप्तमीमांसा और सत्यशासन-परीक्षा आप्तमीमांसा स्वामी समन्तभद्रकी अमर रचना है । अकलंकने इसपर गूढ़ तर्कशैली में अष्टशती नामकी टीका लिखी । विद्यानन्दिने अष्टशतीको पूर्णतः अन्तर्हित करके आप्तमीमांसापर अष्टसहस्री नामक बृहत् टोका लिखी। विद्यानन्दकी प्रत्येक रचनापर आप्तमीमांसाकी तर्कशैली, भाव और भाषाका स्पष्ट प्रभाव है । सत्यशासन-परीक्षा में प्रत्येक शासनको दृष्टेष्टविरुद्ध सिद्ध करनेका तर्क विद्यानन्दिको आप्तमीमांसा के निम्न पद्यसे प्राप्त हुआ लगता है "वन्मतामृतबाह्यानां सर्वथैकान्तवादिनाम् । तामिमानदग्धानां स्वेष्टुं दृष्टेन बाध्यते ॥' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्यानन्द इस कारिकामें आये दृष्ट और इष्ट शब्दसे प्रेरणा पाकर सस्यशासन - परीक्षाको पृष्ठभूमि तैयार की होगी । विभिन्न प्रसंगों पर सत्यशासन-परीक्षा में आप्तमीमांसाकी आठ कारिकाएँ उद्धृत हैं । १. सत्य ० बौद्ध ० पुरुषाद्वैत की समालोचना करते हुए विद्यानन्दिने जो तर्क उपस्थित किये हैं उनकी साक्षीमें आप्तमीमांसाकी चार कारिकाएं उद्धृत हैं [क] अद्वैतकी सिद्धि यदि किसी हेतुसे होती है तो हेतु और साध्यका द्वैत हो जायेगा और यदि हेतुके बिना ही सिद्धि हो जाती है तो वचनमात्रसे द्वैत क्यों नहीं हो जायेगा ? १. " हेतोर द्वैतसिद्धिश्चेत् द्वैतं स्याद्धेतुसाध्ययोः । हेतुना चेद्विना सिद्धितं वामात्रतो न किम् ॥' १० ६२७ २. श्राप्तमी० श्लो० ७ ܨܝ ३. सत्य० परमब्रह्म० २० ४. वही : ३० ३ अद्वैतैकान्त पक्ष में प्रत्यक्षविरोध दिखाते हुए निम्न श्लोकका प्रमाण दिया है२. "अद्वैतैकान्तपक्षेऽपि दृष्टो भेदो विरुद्धयते । कारकाणां क्रियायाश्च नैकं स्वस्मात्प्रजायते ॥ ४ For Private And Personal Use Only ت رو [ आप्तमी० श्लो० २६ ] [ आप्तमी० श्लो० २४ ]
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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