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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रस्तावना [१] सम्पादन परिचय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ अ ] प्रति परिचय प्रस्तुत ग्रन्थके मूल पाठकी शुद्धिमें निम्नलिखित तीन हस्तलिखित प्रतियोंका उपयोग किया गया है 'क' - यह श्री जैन सिद्धान्त भवन, आरा ( बिहार ) की प्रति है । वहाँ इसकी ग्रन्थसंख्या १०७ है । इसमें १३×६ इंच साइजके कुल २९ पत्र हैं । एक पत्र में एक ओर १२ पंक्तियाँ तथा एक पंक्ति में करीब ५० अक्षर हैं । लिपि देवनागरी है। लिखावट साफ किन्तु अशुद्ध है । ग्रन्थ उत्तम दशामें है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार है "ॐ नमः सिद्धेभ्यः । विद्यानन्दाधिपः स्वाम विद्वदेवो जिनेश्वरः । लोकहितस्तस्मै नमस्तात् स्वारमलब्धये ॥ अथ सत्यशासन-परीक्षा ।" अन्त इस प्रकार है " नहि निदेशासु व्यक्तिषु सामान्यमेकम्, यथा स्थूलादिषु वंशादिरिति प्रतीयते, यतो युगपदमिशदेशस्वाधारवृत्तित्वे सत्येकत्वं तस्य सिद्धयेत्, स्वाधान्तरालेऽस्तित्वं साधयेदिति तदेवमनेकबाधकसद्भावाद् भाट्टप्राभाकरैरिष्टं भद्रं भूयात् । " प्रतिके आरम्भ अथवा अन्तमें कहीं भी लिपिकार या लिपिकालका संकेत नहीं है । सर्वप्रथम मैंने इसी प्रतिसे प्रेसकापी की थी; इसलिए इसका संकेत चिह्न 'क' रखा है । अशुद्ध होने के कारण इसे पूर्ण रूप से मूल प्रति न माननेपर भी सम्पादनका प्रथम आधार यही प्रति रही है । 'ख' - यह प्रति श्री जैन मठ मूडबिद्रीके शास्त्रभंडारकी ताडपत्रीय प्रति है । वहाँ के शास्त्रों में इसकी संख्या ६५२ है । इसमें २० || १ || इंचकी साइज के १९ ताडपत्र हैं । प्रत्येक पत्रके दोनों तरफ ग्रन्थ लिखा गया है । केवल पहले पत्रके एक ओर लिखा है । प्रत्येक पत्र में प्रायः ८-८ पंक्तियाँ हैं, कुछ में ७ पंक्तियाँ भी हैं । प्रति पंक्ति में ९८ से १०० तक अक्षर हैं । प्रति पत्रमें दोनों किनारे हासिया ( मार्जिन ) है और बीचमें दो जगहपर डोरी पिरोनेके लिए छेद बने हैं । ग्रन्थ उत्तम दशा में है। इसकी लिपि कन्नड है । अक्षर साफ, सुन्दर और सुवाच्य हैं । लिपिकारने कहीं-कहीं सुन्दर बेल-बूटे भी बनाये हैं । भाषा-संबन्धी अशुद्धियाँ इसमें भी हैं । ग्रन्थका प्रारम्भ 'ॐ नमः सिद्धेभ्यः' के बाद पूर्वोक्त मंगलपद्यसे ही होता है । अन्त भी 'क' प्रतिकी तरह ही है । आदि, मध्य या अन्तमें कहीं भी लिपिकारका नाम तथा लिपिकाल आदिका उल्लेख नहीं है । इस प्रतिका संकेत चिह्न 'ख' है । 'ग' -- यह प्रति भी श्री जैन मठ, मूडबिद्रीके शास्त्र भंडारकी है। वहाँ इसकी ग्रन्थसंख्या ५५२ है । इसमें १३x२ इंच साइजके कुल ४३ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र में एक ओर प्रायः ७-७ पंक्तियाँ हैं। कुछ ६-६ पंक्तियाँ भी हैं । प्रति पंक्ति में ५० से ५२ तक अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र में दोनों ओर हासिया ( मार्जिन ) छोड़ा गया है । बीचमें डोरी पिरोनेके लिए एक छेद भी है। ग्रन्थ उत्तम दशा में है। इसकी भी लिपि कन्नड है। अक्षर साधारण सुन्दर तथा सुवाच्य हैं। प्रथम पत्र थोड़ा-सा टूट गया है, जिससे दो-तीन अक्षर भी चले गये हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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