________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शपिंचेत् // ततउत्तरकलशमादाय // सहस्राक्षशतधारमृषिभिःपावनंकृतं // तेनत्वा भास्कर मभिषिंचामिपावमान्यःपुनंतुते॥ भगंतेवरुणोराजाभगंसूर्योदृहस्पतिः // भगमिंद्र श्ववायुश्चभगंसप्तर्षयोददुः // यत्तेकेशेषुदौर्भाग्यंसीमंतेयच्चमूर्धनि // ललाटेकर्ण / योरक्ष्णोरापस्तत्नंतुसर्वदा // इंतिमंत्रैरभिषिचेत् // तंतश्चतुर्भिमिलितैःकुंभैरामि / षेकः // तत्रमंत्राः // एतद्वैपावनस्नानंसहस्राक्षमृषिस्मृतं // तेनवांशतधारणपाव : मान्यःपुनंत्विमाः // शक्रादिदशदिक्पालाब्रह्मेशकेशवादयः // आपस्तेनंतुदोर्भा / ग्यशांतिंददतुसर्वदा॥ॐ सुमित्रियान आपुऽओषधय संतुदुर्मित्रियास्तस्मैसंतुयो / 1 अपरार्कमते सहस्राक्ष मितित्रिभिमत्ररेकैक कुभेनाभिषेकः // 2 चतुःकुंभैःस्नपनएतत् बृहत्पराशरमते // Awa 4 // 229 // For Private and Personal Use Only