________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार॥१९२॥ धितिलावा॥ नापितः॥ स्नानार्थमुदकं // औदुंबरंकनिष्ठिकाग्रवत्स्थूलंद्वादशांगुलं / भास्कर. दीर्घसरलंसत्वचंदंतधावनकाष्ठंब्राह्मणस्यदशांगुलदीर्घराजन्यस्य॥ अष्टांगुलदीपवै / श्यस्य।उद्वर्तनद्रव्यं / स्नानार्थमुष्णोदकं ॥चंदनं // अहतेवाससी // यज्ञोपवीतं // पुष्पाणि // उष्णीषं // कर्णालंकारौ // अंजनं // आदर्शः॥ छत्रं // उपानही // वै| णवदंडः // पूर्णपात्रं // वरोवा॥ एतान्युपकल्प्य॥पवित्रच्छेदनादिपर्युक्षणांतेआघा, राज्यभागौचजुहुयात् // ॐ प्रजपतयेस्वा० इदंप्र०॥ ॐ इंद्रायस्वा इदमि०॥ ॐ ? अनयेस्वा० इदम०॥ ॐ सोमाय इदंसो०॥ इत्याज्यभागानंतरंस्वशाखावेदारंभ || जाणाहुतिहोमः // अनंतरंब्रह्मणेछंदोभ्यइत्याहुतिद्वयमपिजुहोति // यदिवेदचतुष्टय मधीत्यस्नानंकरोतितदाप्रतिवेदवेदाहुतिद्वयंहुत्वाब्रह्मणेछंदोभ्यइत्याहुतिद्वयंपुनर्जु / // 192 // होति // ततःप्रजापतयइत्यारभ्यानुमत्यंताःसप्ताहुतीर्जुहोति // एवंवेदद्वयत्रयाध्य / For Private and Personal Use Only