________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार 9..एरव // 160 // कार्पासोनिर्मल प्रोक्तःशुचिक्षेत्रसमुद्भवः // तच्चात्रसूत्रनिष्कासंसंहतांगुलिमूलके // भास्कर. आवेष्टयशण्णवत्यातत्रिगुणीकृत्ययत्नतः // अधिप्रदक्षिणावृत्तंसमस्यान्नवसूत्रक तत्त्रिः प्रदक्षिणीकृत्यब्रह्मग्रंथिःप्रदीयते // पृष्ठवंशेचनाभ्यांचधृतंयहिंदतेकटिं॥स्त / नादूर्ध्वमधोनाभ्यांतनधार्यकदाचन // तत्धार्यमुपवीतस्यानातिलंबनचोच्छ्रितंवि छिन्नवाप्यधौतंवाभुक्तानिर्मितमुत्सृजेत् // ब्रह्मचारिणएकंस्यात्स्नातस्यदेवहूनि / वा॥ तृतीयमुत्तरीयार्थेवस्त्राभावेचतुर्थकमिति // // यज्ञोपवीतानिवहूनिचायुऽष्का / / माभिरत्नमालायांदेवलः // त्रीणिचत्वारिपंचाष्टौगृहिणःस्युर्दशापिवेति // ॥दंडः॥ पालाशोब्राह्मणस्यदंडोबैल्बोराजन्यस्यौदुंबरोवैश्यस्य // सचअंगुष्ठमात्रस्थूलतरः अवकासापासवपादादिललाटांतिमकेशसंमितदीर्घोब्राह्मणस्य // बिल्वपक्षोद्भवो | // 16 // ललाटमूलसंमितोराजन्यस्य // औदुंबरवृक्षोद्भवोदंडोघाणाग्रसंमितोवैश्यस्येति // SPOROAAAAAAAA कककककर For Private and Personal Use Only