________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandit 000000000000 षषिश्चतुर्भिरथवासमैः // विस्तृताचतुरस्राचबटोर्वेदीकरोन्नता // प्राक्पश्चिमायां | पदृषटयुक्तमुदीचियाम्यानिपदानिपंच // एवंविधाज्योतिषरत्ननिर्मिताबटो शता युर्मुनयोवदंति // आचार्यपदसंख्याकेर्वेदिकांकारयेदुधः // बटोनिर्गमदक्षिण्यांवि / वाहेविपरीतकेति // विवाहेश्रीधरीवेदीविंशत्यस्रसमन्विता // चतुर्विंशत्यस्रयुतान तिवेदीप्रकीर्तिता // 1 // विवाहोपनयेवेदीएतेषुवज्रउच्यते // तदग्रेकलशाकारामिड तियज्ञविदांमतं // 1 // गृहान्निर्गमवामांगेवसो राश्चवेदिका॥ कार्याविवाहेविड शदिौजीनांगृहदक्षिणेइति // 1 // गृह्यकारिकायां // वेदीकुर्यात्स्वगेहस्यवाममं ? डपमंडिता॥ हस्तोच्छ्रितांचतुर्हस्तांकन्यायाश्चव्रतेबटोः // रत्नावल्यांगपश्चिमाभिमु / खंडारंयहाचेदुत्तरामुखं ॥वेदिकातुनदाकार्यागृहानिर्गमदक्षिणे॥निर्गमशब्देनगृहदा रमुच्यते॥दक्षिणाभिमुखंदारंपूर्वाभिमुखमेववा ॥वामभागेतदाकार्याव्रतेवेदीयथात 000000000GORGEOलडका For Private and Personal Use Only