________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit महंसंप्रददे // प्रतिगृह्यतांइतियजमानोब्रूयात् // देवस्यवेतिप्रतिगृहाति // प्रणी ? ताविमोकः॥ आपःशिवेतिविमोकोदकंयजमानःस्वमूर्धानमभिषिञ्चति // ॐआ. पाशिवाःशिवतमा शान्ताःशान्ततमास्तास्तेकृण्वन्तुभेषजं // 1 // // ततःश्रेयःसंपा। दनं // तच्चैवं // आचार्यादयोवरणक्रमणस्वस्वश्रेयोदानंकुर्युः // // अद्येत्यादि / तस्यसग्रहमखरजोदर्शनशांत्याख्यस्यकर्मणःयजमानाय श्रेयोदानंकरिष्ये // तत्रा दौवचःप्रतिवचनं // शिवाआपःसंतु // संतुशिवाआपः // सौमनस्यमस्तु // ME अस्तुसौमनस्यं // अक्षतंचारिष्टंचास्तु // अस्त्वक्षतमरिष्टंच // यजमानहस्तेगंधा दिदानं // गंधाःपांतुसौमंगल्यंचास्तु // अक्षताःपांतुआयुष्यमस्तु // पुष्पाणिपातु | सौश्रियमस्तु यत्पापंरोगंअशुभंअकल्याणंतहूरेप्रतिहतमस्तु॥ यच्छ्यस्तदस्तु॥भ विनियोगेनमयाअस्मिन्नारदोक्तसग्रहमखरजोदर्शनशांत्याख्येकर्मणियत्कृतंआचा। A6A6A600000000 TAGRAAOOO.GRABADADAWAS For Private and Personal Use Only