________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 74 // संस्कार-कौशंद्विदलमेवच // प्रादेशमा–विज्ञेयंपवित्रंयत्रकुत्रचित् // आज्यस्थालीकांस्य भास्कर. मयीयद्वाताम्रमयीतथा // प्रादेशमात्रदीर्थासागृहीतव्याव्रणाशुभा // दृढाप्रादेश मात्र्यूर्वतिर्यङ्नातिटहन्मुखी॥मृन्मय्यौदुंबरीवापिचरुस्थालीप्रशस्यतइतिरत्नमा / लायां // स्रुवसंमार्जनार्थायपंचवाथत्रयोपिवा // प्रादेशमात्रान्गृण्हीयात्समार्ग कुशसंज्ञकान् // 1 // उपयमनकुशाःसप्तपंचवाथत्रयोपिवेतिग्रहयज्ञकल्पवल्ल्यां // समिल्लक्षणंपरिभाषायामुक्तं // अथवलक्षणम् // खादिरादेःस्रुवःकार्योहस्तमात्रा माणतः // अंगुष्ठपर्वखातंतत्रिभागंदीर्घपुष्करं // 1 // // षट्त्रिंशांगुलांचंकारये / तखादिरादिभिः // कर्दमेगोपदाकारंपुष्करंतहदेवहि // 1 // पुष्कराग्रंषडंशंतुखा है। तंड्यंगुलविस्तृतं // अंगुष्ठैकंस्थूलतरेदंडेतस्यचकंकणमित्यासदन्यां // 2 // पूर्णपात्र // 74 // लक्षणंपरिभाषायामुक्तं // एवमासादनंकृत्वापवित्रच्छेदनैःकुशैः // अंगुष्ठांगुलिपर्व / 0000000000RORGANAGAR For Private and Personal Use Only