________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिरण्यवर्णमनलंसमृद्धविश्वतोमुखं // इत्यग्निंप्रतिष्ठाप्य // // अथऋतुशांतीवि / शेषः // ततईशान्यांयाम्यमारभ्यउदक्संस्थपंक्तिरूपेणकलशचतुष्टयस्यमहीयो / रित्यादिक्रमेण स्थापनं // तथाचनारदसंहितायां // ईशान्यांचतुरः कुंभान्स्थापये | विधिपूर्वकं // याम्यमारभ्योदक्संस्थान्पूर्णपात्रसमन्वितान् // 1 // सूर्यचतत्रवि न्यस्यइंद्राणींचपुरंदरं // चतुर्थेविन्यसेविद्वान्प्रतिमांभुवनेश्वरी // 2 // इति // ॥श 6 // ततो महीद्योरिति भूमिस्टष्ट्वा // ओषधयः समितियवान्क्षिप्त्वा // आजिघ्र | समितिकलशंस्थापयेत् // वरुणस्योत्तम्भनमितिजलंपूरयेत् // वांगंधर्वाइतिगंधप्र। क्षिपेत् // याओषधीरितिसौषधीः // कांडात्कांडादितिदूर्वाः // अश्वत्थेवइति / चपल्लवान् // स्योनाप्टथिवीतिसप्तमृदः // आपोहिष्ठेतिपंचगव्यं // याःफलिनी रितिफलं // परिवाजपतिरितिपंचरत्नानि // हिरण्यगर्भेतिहिरण्यं // युवासुवासा For Private and Personal Use Only