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सद्दरूवमाला - मज्झगय
मूलसिलोगा
पणमिअ पहुं वीरं, सवभावप्पभासगं । नेमिसूरिं गुरुं पुज्जं, किज्जइ रुवमालिगा ॥ १ ॥ जिणो मुणी गुरू करूँ, कत्तारो पिअं पिऊ ।
अप्पाणी अप्प रायाणी, राओ नरंमि जाणए ॥ २ ॥ दया बुद्धी नई घेर्णे, हूँ मीआय मारा ।
एए, पन्नत्ता य नपुंसगे ॥ ४ ॥
माउ ससा छुहा विज्जू, इत्थीलिङ्गमि अच्छरा ॥ ३ ॥ गाणं देहिं हं केतु सेये दाम नह सिरं, चखं च ध सेन्वो सो जो तहा को का, की किं ऐसो ईमो अमू । तुम्हें अम्हें तिलिंगम्मि, सव्वनामाणि जाणए ॥ ५ ॥ धणी आऊ य नेहाल, पाउसो सरओ गिरा ।
गामणी खलपू गोवा, भगवंतो जैसो दिसा ॥ ६ ॥ एगं-दु-तिणि चतौरि, पंच छं सत्त अ य ।
नेत्र - साइणो सद्दा, या संखाइ - बोहगा ॥ ७ ॥ माला पाइयरूवाणं, संखित्ता सहसुंदरा |
मुणिचदुदपणेसा लिहिआ बालबोहिया ॥ ८ ॥
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