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[४७] श्रीप्रभुविरचित शंखेश्वरपार्श्वनाथस्तवन ( ठुमरोनी चाल )
जगजीबनकी छबी देख सखी, मेरे नयन में छवि बाह रही ।
अने हां हां जगजीवनकी० हारे मति लीन भई तद ग्यांन मई, अव रंग सुरंग में लीन सखीरी, प्रेम फंद में आन परी ।
अने हां हां जगजीवनकी० चंद्र चकोर ज्युं लीन भई, दृग जोतमें जोति मिलाय रही ।
___ अने हां हां जगजीवनकी० प्रभु कहे प्रशु. पास शंखेश्वर, देखत सुरवधू मोही रही ।
अने हां हां जगजीवनकी०
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