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हिन्दी स्तवन
[४३] उपाध्याय श्रीयशोविजयजी विरचित
श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथस्तवन अब मोहे ऐसी आय बनी; श्रीशङ्केश्वर पास जिनेसर,
- मेरे तुं एक धनी ॥ अब० (१) तुं बिनु कोउ चित्त न सुहावे,
आवे कोडि गुणी; मेरो मन तुज उपर रसियो,
.. अलि जिम कमल भणी ॥ अव० (२) तुम नामे सवि संकट चूरे,
नागराज धरणी; नाम जपुं निशि वासर तेरो,
ए शुभ मुज करणी ॥ अब० (३) कोपार्मल उपजावत दुर्जन,
मथत वचन अरनी; नाम जपुं जलधार तिहां तुज,
धारू दुःखहरनी । अब० (४) मिथ्यामति बहु जन है जगमें,
पद न धरत धरनी%B उनको अब तुज भक्ति प्रभावे,
भय नहि एक कनी ॥ अब० (५)
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