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सच्चा पथप्रदर्शक अनुपम स्थान नहीं होगा ? अवश्यमेव होगा। अतः हमारा बारंबार नम्र निवेदन है कि हमारे पुण्योदय से जब तक इस नश्वर शरीर में ज्ञानमय ज्योति विद्यमान है तय तक अवश्यमेव दो शब्दरूपी अमररस अपने ज्ञानसिंधु से प्रदान करें ताकि हम सदृश अज्ञानी जीवों को थोड़ही में भेद विज्ञान ज्योति से अपना वास्तविक कल्याण मार्ग प्रगट होता रहे ऐसी मेरी हार्दिक भावना है और आशा करता हूं कि यह मेरी सच्ची भावना "कोयल का मधुर स्वर बसंतऋतु में आम्र मौर के निमित्त सदृश" आपको लिग्वने के लिये वाचाल करेगी।
विशेष कारण- उदासीन ब्र० मथुरालाल जी इन्दौर
वालों ने शांति सिंधु गजट में वर्णी मौजीलाल जी के समाधिलाभार्थ पत्रों को प्रकाशित किया ऐसे निमित्तभूत ब्रह्मचारी जी को कोटिशः धन्यवाद है कि जिनने मेरे उत्साह के लिये अपूर्व विगुल बजाई जिससे ज्ञान स्फूर्ति आत्मा में हुई।
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