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बहुत कुछ लिखना चाहता हूं परंतु ज्ञान की न्यूनता से लेखनी रुक जाती है । बन्धवर ? मैं एक बात की आपसे जिज्ञासा करता हूं जितने लिखने वाले और कथन करने वाले तथा कथन कर बाहा चरणानुयोग के अनुकूल प्रवृत्ति करनेवाले तथा आर्ष वाक्यों पर श्रद्धालु यावत् व्यक्ति हुये हैं । अथवा हैं तथा होंगे । क्या सर्व ही मोक्ष मार्गी हैं ? मेरी तो श्रद्धा नहीं । अन्यथा श्री कुन्दकुन्दस्वामी ने लिखा है । हे प्रभो ! " हमारे शत्रु को भी द्रव्यलिंग न हो" इस वाक्य की चरितार्थता न होती तो काहे को लिखते । अतः पर की प्रवृति देख रंचमात्र भी विकल्प को आश्रय न होना ही हमारे लिये हितकर है। आपके ऊपर कुछ भी आपत्ति नहीं, जो आत्महित करने वाले हैं वह शिर पर आग लगाने पर तथा सर्वांग अग्निमय आभूषण धारण कराने पर तथा यंत्रादिद्वारा उपद्रित होने पर मोक्ष लक्ष्मी के पात्र होते हैं। मुझे तो इस आपकी असाता और श्रद्धा देखकर इतनी प्रसन्नता होती है । प्रभो ? यह अवसर सर्व को दे। आपकी केवल श्रद्धा ही नहीं । किन्तु आचरण भी अन्यथा नहीं ! क्या मुनि को जब तीव्र
१ घानी, कोल्हू
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