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( २७ )
पत्र नं. ४
बरुत्रासागर (झांसी) श्रीयुत् वर्णी जी-योग्य इच्छाकार
पत्र मिला मैं बराबर आपकी स्मृति रखता हूं किन्तु ठीक पता न होने से पत्र न दे सका। क्षमा करना । पैदल यात्रा श्राप धर्मात्मात्रों के प्रसाद तथा पार्श्वनाथ प्रभु के चरण प्रसाद से बहुत ही उत्तम भावों से हुई। मार्ग में अपूर्व शांति रही। कंटक भी नहीं लगा। तथा प्राभ्यन्तर की भी अशान्ति नहीं हुई। किसी दिन तो १९ मील तक चला । खेद इस बात का रहा कि श्राप और बाबा जी साथ में न रहे। यदि रहते तो वास्तविक आनंद रहता । इतना पुण्य कहां-बन्धुवर ? श्राप श्री मोक्षमार्ग प्रकाश और समाधिशतक समयसार का ही स्वाध्याय करिये । और विशेष त्याग के विकल्प में न पड़िये । केवल क्षमादिक परिणामों के द्वारा ही वास्तविक आत्मा का हित होता है । काय कोई वस्तु नहीं तथा पापही स्वयं कृश हो रही है। उसका क्या विकल्प । भोजन स्वयमेव न्यून होगया है जो कारण बाधक है आप
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