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( २३ ) गवेषणा में वह निमित्त क्या बलात्कार अध्यवसान भाव के उत्पादक हो जाते है ? नहीं; किन्तु हम स्वयं अध्यवसान में उन्हें विषय करते हैं। जब ऐसी वस्तु मर्यादा है। तर पुरुषार्थकर उस संसार जनक भावों के नाश का उद्यम करना ही हम लोगों को इष्ट होना चाहिये । चरणानुयोग की पद्धति में निमित्त की मुख्यता से व्याख्यान होता है। और अध्यात्म शास्त्र में पुरुषार्थ की मुख्यता और उपादान की मुख्यता से व्याख्यान पद्धति है। और प्रायः हमें इसी परिपाटी का अनुसरण करना ही विशेष फलप्रद होगा । शरीर की क्षीणता यदि तत्त्वज्ञान में बाह्यदृष्टि से कुछ बाधक है तथापि सम्यग्ज्ञानियों की प्रवृत्ति में उतना बाधक नहीं हो सकती। यदि वेदना की अनुभूति में विपरीतता की कणिका न हो तब मेरी समझ में हमारी ज्ञान चेतना की कोई क्षति नहीं हैं।
विशेष नहीं लिख सका। आजकल यहां मलेरिया का प्रकोप है। प्रायः बहुत से इसके लक्ष्य हो चुके हैं। आप लोगों की अनुकंपा से मैं अभी तक तो कोई आपत्ति का पात्र नहीं हुअा। कल की दिव्य ज्ञान जाने अवकाश पाकर विशेष पत्र लिखने की चेष्टा करूंगा।
प्रा. शु. चिं.गणेशप्रसाद वर्णी.
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