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ऋषिमंडल-स्तोत्र
बांध कर अंगुष्ट को तर्जनी व मध्यमा के बीच में निकाले और बादमें आहाहन मंत्र इस तरह बोलना। ___ॐ आँ जाँ ही श्री भगवत शांतिनाथाय अत्र स्नात्रपीठे आगच्छत । संबोषट।
॥ (१०) स्थापना ॥
ॐ आँ काँ हाँ श्री शान्तिनाथ अत्रपीठेतिष्ठः ठः ठः॥ इस मंत्रद्वारा स्थापना करना चाहिए ।
॥ (११) सन्निधान ॥
ॐ आँ काँ ह्रीं श्री भगवतः शान्तिनाथ ममसनिहिता भवंतवषट ॥ ___सन्निधान करते समय मुष्टि बांध कर अंगुष्ट को उंचा रखना चाहिए।
॥ (१२) सन्निरोध ॥
ॐ आँ क्रॉ ही श्री भगवतः शान्तिनाथाय पूनांतं यावद्वष्टांत्व्यं ॥
सन्निरोध करते समय मुष्टि बांधकर अंगुष्ट को मुष्टि के अन्दर रखना चाहिए।
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