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सकली करण
॥ ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं हः । क्षिमं साधय साधय वज्रहस्ते शूलिनि दुष्टान् रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॥
॥ एसो पश्च नमुकारो वज्रशिलामाकारः ॥ सव्व पाव प्यणासणो वमो वज्रमयो मङ्गलाणं च सव्वेसिं खदिरांगारमयो खातिका ॥
॥ पढम हवई मङ्गलं वोपरि वज्रमय पिधानं ॥
इस तहर तीसरा सकलीकरण बताया है सो साधक पुरुषको ठीक तरह समझ लेना चाहिए।
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