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ऋषि मंडल - स्तोत्र - भावार्थ
२९.
अजिता, (१३) नित्या, (१४) मदद्रवा, (१५) कामांगा, (१६) कामवाणा, (१७) सानंदा, (१८) आनन्दमालिनी, (१९) माया, (२०) मायाविनी, (२१) रौद्री (२२) कला, (२३) काली, (२४) कलिभिया, इस तरह चौवीस देवीयोंके नाम बताये गये हैं ।
एताः सर्वा महादेव्यो, - वर्त्तन्ते - या - जगत्रये ॥ मह्यं सर्वा प्रयच्छन्तु, कान्ति कीर्त्ति वृतिं मतिं ४८
भावार्थ - - इस तरह चौवीसही देवीयां जो जैन शासनकी अधिष्ठायिका हैं, और तीन लोकमें जिनका निवास है; वह देवीयां मुझे कान्ति, लक्ष्मी, कीर्ति, धैर्यता, और बुद्धिको प्रदान करे ।
दिव्यो गोप्यः स दुःप्राप्याः - श्रीऋषिमंडलस्तवः ॥ भाषित स्तीर्थनाथेन - जगत्राणकृतेनघः ॥ ४९ ॥
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भावार्थ - - श्री तीर्थकर भगवान फरमाते हैं कि, यह ऋषिमंडल स्तोत्र बहुत दिव्य तेजस्वी है, और बहुत मुश्किलसे मिलता है, इसे गुप्त रखना चाहिये यह जगतकी रक्षा करनेवाला है ।
रणे राजकुले वन्हौ, - जले दुर्गे गजे हरौ ॥ श्मशाने विपिने घोरे, - स्मृतो रक्षतु मानवं ॥ ५० ॥
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