________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ऋषिमंडल-स्तोत्र
वज्रपाणी एरावणवाहन सौधर्मेन्द्रप्रमुखा सव्वक्राश्चतुषष्टिमुरेन्द्रा ही प्रमुखाश्चतुर्विंशतिदेव्यः पूजांमतीच्छतु स्वाहा ।। __ ॐ औं क्राँ ही श्री शान्तिनाथजिनपदभक्ता सर्वदेविदेवा पूजांमतीच्छतु स्वाहाः॥ - इन मंत्रोद्वारा सर्व देव देवकी पूजा वासकपूरादि से अञ्जलीमुद्राद्वारा करना चाहिए। प्रथम जिनभगवान की पूजा करना, बाद में अधिष्टायक देवदेवीयों की पूजा करना और फिर अष्ट प्रकारी पूजा की सामग्री नैवेद्य आदि चढा कर होम-तर्पण करके आरती उतारना, चैत्यवन्दन करना, शान्तिकलश करना और ब्रह्मशान्ति बोलना। __(१७) - जाप कर ही लिया और अट्ठारहवें क्षोभणक्षामणां अञ्जलीमुद्रा से करना (१९) वें विसर्जन अस्तमुद्रा अर्थात् मुष्टिको बंधकर तर्जनी व मध्यमा उङ्गली को बाहर नीकाल साथ ही पृथ्वी की तरफ रखने से अस्तमुद्राहोतीहै जिससे विसर्जन कर (२०) वें प्रार्थना स्तुतिमें.
आज्ञाहीन क्रियाहीनं, मंत्रहीनं च याकृतं ॥
स तत्सर्वं कृपया देव ! क्षमस्य परमेश्वर ॥१॥ • उपरका श्लोक बोल कर समाप्त करना ।
For Private and Personal Use Only