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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) उप. चूंकि य फज इत्त का अकेंद्र है इसलिये अज बराबर है अय के प० १५ लेकिन अ य बराबर स द के बनायी गई है इसलिये अज और स द में से हर एक अय के बराबर है इसलिये अज बराबर है स द के इसलिये अब दी हुई बड़ी रेखा में से एक हिस्सा अजबरा. बर सद छोटी रेखा के कट गया और इसी हिस्से के काटने की जनरत थी टि इसी प्रकार से हम दो छोटी बड़ी रेखाओं में से छोटो को इस कदर बाटासक्त है कि बहकर बड़ी के बराबर होजाय और एक ऐसौसीधी रेखा भी खींच सक्त है जो दो सीधी रेखाओं के योग या घन्तर के बराबर हो साध्य ४ प्रमयोपपाद्य सा० सत्र- अगर दो विभुजों में एक त्रिभुज को दो भुज दूसरे विभुज की दो भुजों के अलग २ बराबर हो और उन भुजों से बने हुए कोन भी आपस में बराबर हों तो उन विभुजों के आधार यानी तोसरी भुज भी आपस में बराबर होंगी और दोनों निरज भी आपस में बराबर होंगे और एक विभुज के बाकी कोन अल्ग अलग दसरे त्रिभुज के बाको कोनों के बराबर होंगे यानी वह कोन आपस में बराबर होंगे जिनके सामने को भज बराबर है वि० सत्र- फर्ज करो कि अबस और दयफ त्रिभुज हैं अवस विभुज की दो भुज अब और अस अलगद यफ विभुज की दय और दफभुजों के बराबर हैं । यानी अब बराबर है दय के और अस बरा ।। बर है दफके और ब अस कोन बराबर है। इयफ कोन के बस यक तो बस आधार बराबर होगा य फ़ आधार के और अबस त्रिभुजदयफ त्रिभुज के बराबर होगा और बाकी कोन जिनके सामने की भुज बराबर हैं अलग२ बराबर होंगे यानी अब स कोन बर; For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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