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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८१ ) इसलिये व ह भज बराबर है दज भुजको १-सा०६ फिर चूंकि यजफ आधा सम कोन है और य फज समकोन है क्योकि वह बराबर है घसद कोन के १-सा ३४ इसलिये फयाज आधा समकान है और इसलिये बराबर है ৭ ) ( লণ इसलिये जफ बराबर है फब को चूंकि यस बराबर है लाभ के इसलिये यस परता व वरावन है सभ परकी बर्ग के इसलिये या मोर लभ पर के मार्ग मिलकर दूने से सअपर को वर्गो लेकिन अपरका बर्ग बराबर है यस और सत्र परके बगों -सा ४० इसलिये यत्र पर का बर्ग टूना है इस परके बर्गका फिर चूंकि जय बरावर है फव के इसलिये नफा घरका बर्ग बरसर है पाय पर के बर्ग के __ इलिय जफ और फय परके बर्ग मिलकर दूने में कय पर के वर्ग के लेकिन व जपरका बर्ग बराबर है जक और फय परके बगाके १-सा०४७ दुरालिये यज परका बर्ग दूना है फय परके वर्गका लकिन कब बराबर है स ह के १-सा०३४ इसलिये य ज परका वर्ग दूना है सादा परके वर्गका लेकिन यह साबित होचुका है कि यज पर का बर्ग टूना है इस पर के वर्गका इसलिय य अ और यज पर के मग मिलाकर दून रे आसार For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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