SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (अस ओर ब द का आपस में समानान्तर होना ") व स का अद को दो बराबर हिस्सों में बांटना (अस और ब द का आपस में समानान्तर होना अद का बस को दो बरावर हिस्सों में बांटना निस और बद का आपस में समानांतर होना (अद से चतुर्भुज क्षेत्र अवसद के धरातल का दो ब राबर हिस्सों में बांटना अल और बद का आपस में समानांतर होना अस से चतुज क्षेत्र अवसद के धरातल का दो ब. रावर हिस्सों में बांटना अब और स द का आपस में बराबर होना अस और ब द का आपस में बराबर होना अव और स द का आपस में बराबर होना व अस और सदव कोनों का आपस में बराबर होना अव और सद का आपस में बराबर होना अषद और दस अ कोनों का आपस में बराबर होना अब और सद का आपस में बराबर होना (बस का अद को दो बराबर हिस्सों में बांटना (भव और स द का आपस में बराबर होना प्रद का वस को दो बराबर हिस्सों में बांटना प्रव और स द का आपस में बराबर होना अद से चतुज क्षेत्र अवसाद के धरातल का दो ब For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy