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३२ पद्य
१८२-१८४ निश्चय नय और व्यवहार नय की उपेक्षा जीव का निरूपण। ३३ पद्य
१८४-१८८ वीतराग और सराग चारित्र का विवेचन । ३४ पद्य
१८८-१९१ आत्मा की अनन्त शक्ति और कर्मों की अनन्त शक्ति का कथन । ३५ पद्य
१९१-१६४ पुण्य-पाप की व्याख्याएँ। ३६ पद्य
१९४-१९७ श्रात्मा के लिये पुण्य-पाप की अनुपादेयता। ३७ पद्य
१६७-२०० पुण्यात्रव और पापास्त्रव का निरूपण । ३८ पद्य
२००-२०३ श्रात्मा की शुद्धोपयोग, शुभोपयोग और रूप परिणतियों का निरूपण । ३६ पद्य
२०३-२०६ पूर्बकृत् पुण्य-पाप के फल तथा इन्हें बदलने केहि पुरुषार्थ । ४० पद्य
२०६-२०६ पुण्य-पाप के संयोनी भंग-पुण्यानुभन्धी पुरया, पुरणानुबन्धी पाप, पापानुबन्धी पुण्य और पापानुबन्धी पाप का विवेचन ।
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