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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ पद्य श्रात्मा का संकोच और विस्तार शक्ति का निरूपण श्रात्मा के परमात्म स्वरूप का विचार । ८ पद्य श्रात्मा का निरुपाधि स्वरूप, शुद्धात्म तत्व की प्राप्ति के लिये ध्यान की आवश्यकता, आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल ध्यान का स्वरूप, धर्म ध्यान के भेद-पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत पिण्डस्य ध्यान की पार्थिवी, अ.ग्नेय, वायवीय, जलीय और तत्त्वरूपवती धारणाएँ ६ पद्य ___ अनादि काल से चली आयी जन्म सन्तति को नाश करने में सहायक मनुष्य जन्म | १० पद्य ७२-८३ अात्मा और कर्म का सम्बन्ध, कर्मों के मूल और उत्तर भेद कमों की अवस्थाएँ-बन्ध उत्करण, अपकर्षण, सत्ता, उदय, उदारणा, संक्रमण, निधति और निका बना की व्याख्याएँ। ११ पद्य ८३-६३ __संसार की उपमाएँ, विरक्त होने के लिये अनित्य, अशरण, संसार एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्त्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म भावना का विवेचन। १२ पद्य १३-१८ निश्चय धर्म-अात्म धर्म का विवेचन । १३ पद्य ६८-१०३ वस्तु विचार के दो प्रकार-प्रमाण और नय, नय भेद-निश्चय और व्यवहार, व्यवहार के सद्भत और असद्भुत भेद, निश्चय नय का विषय | For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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