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विस्तृत विवेचन सहित
भी नहीं होता; अतः धन को पर समझ कर उससे मोह बुद्धि दूर करनी चाहिये। ___ मोह अपनी वस्तु पर होता है, दूसरे की पर नहीं। धन अपना नहीं, आत्मा का धन के साथ कोई सम्बन्ध नहीं, यह तो पौद्गलिक है। इसी प्रकार भोजन, वस्त्र भी आत्मा के नहीं हैं, आत्मा को किसी भी बाह्य भोजन की आवश्यकता नहीं है। इसे भूख नहीं लगती है और न यह खाती-पीती है, यह तो अपने स्वरूप में स्थित है। विज्ञान का भी नियम है कि एक द्रव्य कभी भी दूसरे द्रव्य रूप परिणमन नहीं करता है। किसी भी द्रव्य में विकार हो सकता है, पर वह दूसरे द्रव्य के रूप में नहीं बदलता है। अतः श्रात्मा जब एक स्वतन्त्र द्रव्य है, जो चेतन है, ज्ञानवान है, अमूर्तिक है, फिर वह मूर्तिक भोजन को कैसे ग्रहण करेगा ? ___ यहाँ शंका हो सकती है कि जब आत्मा भोजन को ग्रहण नहीं करता तो फिर जीव को भूख क्यों लगती है ? इस संसार के सारे प्रयत्न इस क्षुधा को दूर करने के लिये ही क्यों किये जा रहे हैं ? मनुष्य जितने पाप करता है, बेईमानी, ठगी, धूर्तता हिंसा, चोरी उन सबका कारण यह क्षधा ही तो है। यदि यह भूख न हो तो फिर विश्व में अशान्ति क्यों होती ? आज संसार
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