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विस्तृत विवेचन सहित
१०१
विवक्षा करना, असद्भूत अनुप चरित व्यवहार नय है। औदयिक क्रोधादि भाव जब बुद्धिपूर्वक हों, उन्हें जीव के कहना उपचरित सद्भूत व्यवहार नय है। उदाहरण ---कोई पुरुष क्रोध या लोभ करता हुआ, यह समझ जाय कि मैं क्रोध या लोभ कर रहा हूँ, उस समय कहना कि यह क्रोधी या लोभी है।
व्यवहार का निषेध करना निश्चय नय का विषय है। निश्चय नय वस्तु के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालता है। जैसे व्यवहार नय जीव को ज्ञानवान् कहेगा तो निश्चय नय उसका निषेध करेगा-जीव ऐसा नहीं है, क्योंकि जीव अनन्तगुणों का अखंड पिण्ड है, इसलिये वे अनन्तगुण अभिन्न प्रदेशी हैं। अभिन्नता में गुण-गुणी का भेद करना हो मिथ्या है, अतः निश्चय नय उसका निषेध करेगा। यदि वह किसी विषय का विवेचन करेगा तो उसका विषय भी मिथ्या हो जायगा। द्रव्याथिक नय का ही दूसरा नाम निश्चय नय है। निश्चय नय निषेध के द्वारा ही वस्तु के प्रवक्तव्य स्वरूप का प्रतिपादन करता है। ___जीव का इस शरीर के साथ सम्बन्ध व्यवहार नय की दृष्टि से है, इसी नय की अपेक्षा देव-पूजा, गुरुभक्ति, स्वाध्याय, दान आदि धर्म हैं। एकान्तरूप से न केवल व्यवहार नय ग्राह्य है और न निश्चय नय ही। प्राचार्य ने उपर्युक्त पद्य में क्षण
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