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विस्तृत विवेचन सहित
पूड
स्थिर होना। विशुद्ध ध्यान के द्वारा ही कर्मरूपी ईन्धन को भस्म कर स्वयं साक्षात् परमात्मस्वरूप प्रारम तत्त्व की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा के समस्त गुण ध्यान के द्वारा ही प्रकट होते हैं। ध्यान करने से मन, वचन और शरीर की शुद्धि हो जाती है। मन के आधीन हो जाने से इन्द्रियाँ वश में आ जाती हैं। श्री शुभचन्द्रचार्य ने ज्ञानार्णव में मन के रोकने पर विशेष जोर दिया है----
एक एव मनोरोध सर्वाभ्युदय साधकः । यमेवालम्ब्यः संप्राप्ता योगिनस्तत्त्वनिश्चयम् ॥ मनःशुद्धथैव शुद्धिः स्यादेहिनां नात्र संशयः । वृथा तद्व्यतिरेकेण कायस्यैव कदर्थनम् ॥ ध्यानशुद्धिं मनःशुद्धिः करोत्येव न केवलम् । विच्छिनत्यपि निःशकं कर्मजालानि देहिनाम् ।
अर्थ--एक मन का रोकना ही समस्त अभ्युदयों को सिद्ध करनेवाला है; क्योंकि मनोरोध का पालम्बन करके ही योगीश्वर तत्त्वनिश्चयता को प्राप्त होते हैं। स्वात्मानुभूति द्वारा मन की चंचलता रोकी जा सकती है। जो मन को शुद्ध कर लेते हैं, वे अपनी सब प्रकार से शुद्धि कर लेते हैं। मन की शुद्धि के पिना शरीर को कष्ट देना या नपश्चरण द्वारा कश करना व्यर्थ है।
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