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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणांपेंगळ. विषमवृत्तं ( १. स न स ल ग=११ रूप. ७६४ २. स भ न र =१२ उपलेखा. ७४२ १६८ महातुरा. ) ३. त ज न र =१२ रूप १,५१७ (४. म न न र =१२ रूप १,४०१ प्रथमे स न स ल ग आणजो, पद बीजुं स भ न र थी जाणजो त्रीजे चरणे त ज न र छे छूरा! चोथे मा न ज र बने महातुरा. १. मज र र =१२ विशिखलता. अंक ७१९ १६९ सुरभि. २. न ज ज र =१२ मालती.. अंक ७३१ | ३. न न र य =१२ परिमितविजय .अंक ८३ ( ४. न ज ज र ग-१३ मगेंद्रमुख. अंक ८१५ प्रथम पड़े न जा र रा जाणजो, द्वितोय पदे न ज जा र आणजो; तृतीय चरण ना न रा य आणो, सुरथि चतुर्थ न जा जरा ग जाणो. आ वृत्त छंदोलतामांधी मळ्युं छे. छंदोलतामां तेनां प्रथम पादना लक्षणमा उपर प्रमाणे गण कह्या छ पण उदाहरणमां एक रगण आछो छे. . [१.स स ज ग ग -११विमला. अंक५६७ २.स म र य =१२बधिरा. अंक .८१ ३.सस ज य ससजसग-२५रूप ७६,६३,१२८ १४.स ज स स ग =१३कलहंस. अंक ८२३ प्रथमे स स जा ग गा धरीजे, गिरिकन्या स भ रा य आण बीजे; सृताये चरणे ससा जय सा साज सगा करवा वसन्तरि भाखे, स ज सा स गा श्रुति पदे कवि दाखे. छंदोलतामाथी आ वृत्त लीधुं छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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