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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंकीर्ण वर्णमेळ. ता ता त गा युग्मनां पाद छे. विलोमे विश्वप्रभा, जुवो अंक ९१.. . ९१ विश्वप्रभा.र [१,३. त त त ग. १०विशालान्तिक.अंक ४५६ । २,४. ज त त ग.=१० विशालप्रभ. अंक ४५६ ओने त ता ताग आण्या गमे । जता त विश्वप्रभा गा समे. अतैजनुं विलोम, जुवो अंक ९०. ९२ आगोल १,३. स स ज ग.=१० सहजा. अंक ४६८ (२,४. तसज ग.=१० अहिला. अंक ४६९ विषमे स स जा ग थायछे आलोलघटिका त स ज्ग छे. -विलोमे लोलघटिका थायछे, जुवो अंक ९३. ९३ लोलघटिका, (१,३. त स ज ग.= १० अहिला. अंक ४६९ घटिका. २,४. स स ज ग.=१० सहजा. अंक ४६८ ओजे त स ज गा पदे गमे घटिका स स ना गं थी समे. आलोलघटिका, विलोम, जुवो अंक ९२. ११,११,नां रूप ४१,९२,२५६ थायछे. ९४ उपचित्र, (१,३. स स स ल ग.-११ उपचित्र. अंक ६०६ उपचित्रा.२,४. भ भ भगग. = ११ दोधक. अंक ५८० विषमे स स सा ल ग आणजो; भा भ भ गा ग समे उपचित्रे. इहानां समपद ते आनां समपद छे. द्रुतमध्यानां विषम पद ते आनां समपद छे. अवहित्र-त्रा अंक ९५मे छे, तेनुं विलोम. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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