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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्णमेळ. सममांहे स भ छे रना पछी स ग पदे छे १ वागवल्लभमां नीचे प्रमाणे छे. न भ रा श्च विषमे रयौ यदा समे चेत्, स भ रा आसववासिता जसौ च गुरु रेषा. विषम पादमां न भ र र य =१५ समपादमां स भ र ज स ग = १६ उपरनी कवितानी रचना प्रमाणे तो विषम पदमां चौद वर्ण ने स न र ज ग ग-१४ थायछे, एमां भूल छे. प्रथम नगण जोइये पण ते थतो नथी. विलोमे अनासववासिता थायछे, जुवो अंक ८६. . . १६,१२ नो रूप. २६,८४,३५,४५६ थायछे. ८४ हीनताली. १,३. स भ स ज र ग. १६ रूप. १०,९९६ २,४. मन ज र. =१२ रूप. १,४०१ विषमे सा भ स ज र गे रचाय हीनताली; आवेछे म न ज र युग्ममां सदा. अहीनतालीनुं विलोम, अंक ५९. १६,१३ नां रूप. ५३,६८,७०,९१२ थायछे. ८५ अपरीणिता)१,३. न न स त त ग.१६ रूप. १६.६८८ १२,४. न न त त ग.=१३ चंद्रिका. ८४३ न न स अपरप्रीणिता ता ता ग छे ओजमां; न न त त ग अनोजे रचो मोजमां. परप्रीणितानुं विलोम. जुवो अंक ७१ __(१,३.स भर जसग:१६ रूप.१५,०२८ ८६ अनासववासिता. (२,४. न भ र र य.-१५ रूप. ५,३०४ For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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