SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 670
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संकीर्ग. वर्णमेळ. ४८९ ७५ अतिप्रतिविनीता. १,३. स भ र न ग ग =१४रूप ३,७६४ १२,४. न य ज र ग.=१३ रूप.१,३६० स भ रा छे न ग गा अतिमतिविनीता; समपदमां ना य जा र गा विनीता. प्रतिविनीतानुं विलोम, जुओ अंक ६८. ),२.म सजरगग.-१४जगतसमानिका १२ ".२,४. स स ज र ग.-१३ रूप १,३६९ ओजे छे म स जा र गा ग संमदाक्रान्ता; सममां स स जा र गा धराय शान्ता! मदाक्रान्तानुं विलोम, जुवो अंक ६९. (१,३.भ स त त ग ग:-१४ पुष्पशकटिका.९२५ ७७ लास्यलीला. १२,४. त य र र ग.-१३ भाजनशीला. ८०५ छे विषम विषे भा सा त ता गा ग कीला! ता या र र गा छे युग्ममा लास्यलीला. लास्यलीलालय विलोम, जुवो अंक ७०. १४,१५नां रूप ५३,६८,७०,९१२ थायछे. ७८ प्रमोदपरिणीता... .१,३. न न र ज ग ग.-१४रूप २,७५२ "१२,४. न ज ज भ य.=१५ रूप ७,५३६ विषम चरण ना न राज गा ग गीता; न ज ज भ याथी समे प्रमोदपरिणीता. विलोमे प्रमोदपद, जुवो अंक ८२. ७९ अवरोधवनिता.. . १,३. न भ भ र ल ग.१४ रूप ५,५६० १२,४.स स ज भ य.=१५ रूप ७,५१६ विषम पादविषे न भ भा र ला ग छे; अवरोधवनितमा समे स स ज भा या. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy