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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणपिंगल. अर्द्ध समवृत्त. mannrvwwww युग्मे मा स ज गा ग थाय, भाई ! अंक ३० मे असुराढ्यानुं विलोम. ४५. नटक. (१,३. स स स स. =१२ तोटक. ७५३ १२,४. त ज ज ल ग.११ मोटनक. ६२० विषमे स स सास धरो नटके ताजा जल गा सम पाद टके. अंक ३२मे किंनटक छे तेनुं विलोम. ४६ अवाचीकृतवदना.. (१,३. तन भस.=१२ रूप. १,९८१ "१२,४. न य भ गग: ११ श्रुतकीर्ति.६७६ ता ना भस अवॉचीकृतवदना; समपदमां ना या भगगा छे. अंक ३३ मे. साचीकृतवदना छे तेनुं विलोम. (१,३. स भ भ र. =१२ राधिका. अंक. ७३६ ४७ लुप्ता.. (२,४. स स स ल ग.=११ उपचित्रा. अंक. ६०६ स भ लुप्ता भ र तो विषमे करो; स स सा ल म युग्म पदे धरो. अंक २८मे हरिप्लुता छे तेनुं विलोम. ४८ कुसमचर. १,३. भ न ज य.=१२ पथिकान्ता. ७०एं । २,४. भ भ भ ग ग.=११ दोधक.. ५८० छे कुसुमचर भ ना ज य ओजे; छे भ भ भा ग ग पाद अनौजे. अंक ३४ मे कमलाकर छे तेनुं विलोम. (१,३. न ज ज रें.=१२ मालती. अंक. ७३१ (२,४. न न र ल ग.-११ सुभद्रिका. ६०३ न ज ज र थी मृदुमालती बने; For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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