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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणपिंगळ. समवृत्त. १४०७ उझितकदन. भन+३+३न+२ग १,६७,६७,८७१ उम्झितकदन विषे भन छे त्रण जा पर त्रण न पर चरम बे गा. १४०८ कुहककुहर. २न+मय+२न+मय+लग. १,९१,३२,९९२ कुहककुहरमां बेना तथा मा यपर द्विन पछी माया अने लाग छे. १.४०९ सूरसूचक. म स ज+३स+२ य+ल ग. १,९२,४८,९८५ मा साजा पद सूरसूचक विषेत्रण सा पर बे य आणो लगा अन्तमां. १४१० विषाणाश्रित. .. य न+रभ+ज त+स य+ल ग. १४१० विषाणामा १,९८,१५.६१० 'विषाणाश्रितविषे यना छे र म अने जताछे सय तथा लगा अन्तमां. १४११ विनिद्रसिन्धुर. १२+२ ज र+ल ग. २,२३,६९.४२७ चार रा आणजो बे जरा जाणजो विनिद्रसिन्धुरे धरो लगा पदे पदे. १४१२ शकुन्तकुन्तली. १४१२ शकुन्तकुन्तल'. । म+२+२न+ रज र+ल ग. २,२३,८०,१७७ मा ने बेरान बेनेर जा, र पर ल ग नवे, हये दशे शकुन्तकुन्तले, १ वागवल्लभमां आ नाम अने ९,७,१० यति छे. १४१३ भुजगेरित. म य+न त+२न+रस+ल ग. २,३८,५३,५१३ माया ने न ताछे द्विन, रसा ने ल ग यति वसु हरे, हये भुजगेरिते. पिंगळादर्शमां ८,११,७ यति छे. १४१४ भुजंगविजूंभित.ममत+३न+रस+लग.२,३८,५४,८४९ आठे रुद्रे मा मा ता छ, त्रण न पर रस पर लगा, भुजंगविज्रभिते. वृत्तरत्नाकर, प्राकृतापंगळसूत्र, वाग्वल्लभ, अने शब्दकल्पद्रुममा ८, ११, ७ यति कही छे. पिंगळादर्शमां ८, १२, ६ यति कही छे, तथा छंदःप्रभाकरमां याते कही ना, ते उपर जणावेला प्रमाण ग्रंथोमां माप नहि. जोवाथी बन्युं हशे. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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