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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४.६ रणपिंगत. समवृत्त. .... दुर्लतिका,माधवी, दुर्मिला । (स. ७१,९०,२३६ १३५८१ दुमिलका, दुमेला. ८,६, १० यति. वसु ने छ दशे यति, दुर्लतिका वो,माधवामां वसु सा पद छे. १,२ दुर्लतिका नाम अने ८,६,१० वर्णे यति छंदोबोधमां छे. भाषामां एने माधवी केहेछे. ३ प्राकृत पिंगळसूत्रमा दुर्मिला नाम आपी तेमां १०,८,१४ मात्राए एटले ८,६,१० वर्णे यति कही छे, ते एकनु एकज छे.. ___ ४ दुर्मिलका नाम वृतदीपिकामां आपी ८,६,१० वर्णे यति कही छे; वागीभूषगमां दुर्मिलका, दुर्मिला नाम आपी तेमा यति कही नथी. ५ दुर्मिला, दुमेला नाम पिंगळादर्शमां आपी १२,१२ यति कही छे. बोलवामां पण ते ठीक छे. १३५९ नेहपाळ. १२, १२यति.मतर+सत+जभ+स.८०,४६,२४१ बारे बारे नेहपाळ मा तर छे, साता पर जाम छे स चरममां पिंगळादर्शमा १२, १२ यति कही छे. १३६० वैश्याप्रीति. म भ+य म+नभ+नस. ८३,५१,८५५ आठे आठे त्रण यति, छे वेश्याप्रीति म भ ने, यम पर नभ नसा, मंदारमरंदचंपूमां आ वृत्तमा ८,८,८ यति कही छे. १३६१ वेल्लितवेल. ३भ+मस+नन+स. ८३,६८,५७७ वेल्लितवेल विषेत्रण भा ने मा स पछी न न चरम स रचनो. वागवल्लभ. १३६१ (अ.) अतुलपुलक. न+स. ८३,८८,६०८ अतुलपुलक कविवर! रच हय न गणपर सी चरणे. आ वृत्त वागवल्लभ प्रमाणे छे. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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