________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवेशक.
एमां "कोला" आगळ यति आवतो होय तो यतिभंग नहि. "संवाहन" शब्दमां "संवा" आगळ यति आवे तो शब्दभंग थायछे, पण ए यतिभंग गणातो नथी. "उच्चारित" एमां उच्चा, रित एम यति पंडी शके. "आल्हादक" एमां आल्हा, दक थायछे.
अनुप्रास अथवा · यमक. छंदना चरणना अन्त्याक्षरोने नियममां मूकी छंदने सुशोभित बनाववानी प्रथा जेवी प्राकृत भाषाछंदो माटे छे तेवी संस्कृत छंद माटे पूर्वाचार्योए आवश्यक गणी नथी. ए प्रथाने भाषाशास्त्रियो अनुप्रासना नामथी ओळखेछे; ने केहेछे के ए विना छंदोरचना नीरस थइ जायछे. __ अर्थालंकारना १०८ भेद केटलाक साहित्यशास्त्रकारो माने छे, तेमांना शब्दालंकारनो एक भेद आ अनुप्रासालंकार छे.
छंदोलालित्यमां वधारो करवा माटे वर्णसाम्य लाववामां आवेछे; तेनुं नाम अनुप्रास. तेना मुख्य भेद ५ छे. १ नृत्यनुप्रास, २ छेकानुप्रास, ३ लाटानुप्रास, ४ अन्त्यानुप्रास, ५ श्रुत्यनुप्रास. केटलाक आ उपरांत यमक नामनो छठो भेद छे एम केहेछे अने केटलाक आ सर्व भेदने सामान्य रीते यमक एवं नाम आपेछे.
एकना एक वर्णनी जेमां अनुवृत्ति थती होय, अर्थात् ज़े छंदमां एकनो एक वर्ण घणी वार आवतो होय त्यां वृत्यनुप्रास थयेलो समजवो.
" मया करो दया निधि, जया गया जती वदे." आमां य अक्षरनो एक करतां वधारे वार प्रयोग थयो छे माटे आ वृत्यनुप्रास' जाणवो. १ आने केटलाक गूर्जर कवियो “झड" एवं नाम आपछे.
For Private And Personal Use Only