SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ त्रिष्टुप छंद. वर्णमेळ. १४ ।।। सिद्धि. १ इन्द्र , २ उपेन्द्र ,, ३ उपेन्द्र , ४ उपेन्द्र, ।।।। उपेन्द्रवज्रानां चारे पाद... प्राकृत पिंगलसूत्रना की बुद्धि नाम भापेछे. तथा गणप्रसार प्रकाशमा ऋद्धि छे. आ उपरथी जणायछे के, जो बेज वृत्तनु मिश्रण थाय तो तेना मात्र १४ भेद थाय, पण बे करतो वधारे एटले त्रण के चार वृत्त मिश्रण थाय तो तेना घणा भेद थायछे. गुरु अने लघु एवां बेज चिन्ह छे, माटे वे वृत्तना मिश्रणना भेदनो प्रस्तार भाई जणाव्या प्रमाणे थइ शकेछे, पण बे उपरांतनुं चिन्ह जणाववानुं साधन नथी तेथी तेनो प्रस्तार थइ शकतो नथी. पण ण वृत्तना मिश्रण- उपजाति वृत्त करतां बे पद तो एकनां आवे अने अककुं बीजार्नु आवे त्यारे चार पाद थाय तेनी चालवणी करतां चार मुख्य भेद किया किया मिश्रणथी थाव ते नीचे बताववामां आव्युं छे. | पादांग. १ भेद. २ भेद. | ३ भेद. | ४ भेद. । م | इ. उ. i م ni to वं. y hi no س im nor هه ४ । वं. वं. his उपर प्रमाणेनुं मिश्रण जोवामां आवेछे, पण एम करवु उचित नयी एम बार अक्षरना अंक ६९६ना माया वृत्तनी टीप जोवाथी जणाशे. एंटले आ ठेकाणे ए विषे विस्तार कर्यो नथी. ५७४ पटुपट्टिका. स,ज,ज,ग,ग. ३६४ पटुपट्टिका स ज जा ग गे थी. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy