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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तालिय मात्रामेळ. ७ प्रवृत्तक. १, ३ पादमा उदीच्यवृत्ति प्रमाणे. (२-३ भेगी विषमे) २, ४ पादमां प्राच्यवृत्ति प्रमाणे. (४-५ भेगी समे) समे चार पांच तो मळे, बीजो त्रीजी ते विषमे भळे; बधा अवर बाकीना खरे, नियम तेन प्रवृत्तके करे. २३२ प्रवृत्तकनी संख्या विषेः एनां विषम चरणनां रूप उदीच्यवृत्ति प्रमाणे बे थायछे, अने समनां रूप प्राच्यवृत्ति प्रमाणे चार थायछे, माटे २ x ४ = ८ रूप पूवार्द्धनां थयां; अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां थाय, माटे (xc=६४ रूप बधां मळीने थायछे. ८ अपरांतिका. प्रवृत्तकना सम पाद प्रमाणे चारे पाद आणबां. ८ (तेमां ४,५. भेगी)+र+ल+ग-१६मात्रा, एवां चार पाद. आठ उपरे सूर्य वास छे, कल बधी मळी सोळ पाद छे; चार पांच तो एकठी दिसे, नियम एज अपरांतिका विषे. २३३ प्रवृर्तकनां समचरण प्रमाणे एनां चारे चरण थायछे, तेथी ४४४-१६ रूप पूर्वार्द्धनां, अने तंटलांज उत्तरार्द्धनां थतां १६४१६- २५६ रूप बधां मळीने थायछे. . चारुहासिनी. प्रवृत्तकना विषम पाद प्रमाणे चारे पाद आणवां. एटले, ६ (तेमां २,३ भेगी)+र+ल+ग=१४. छ उपरे सूर्य वास तो, भळे बौजी त्रीनी साथ तो; For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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