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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मात्रासमक. मात्रामेळ. २०७ AAAAAA २ चर्पट. चारे पादमां सोळ सोळ मात्रा नियमसर आवे, पण नवमी मात्रा लघु आणवी, अने छेल्लो अक्षर गुरु आणवो. १, ५, ९, १३ मात्राए ताल. सोळ कला, लघु नवमी आणो, चर्पटमां गुरु *चरमे जाणो; .. *अंते. एक उपर ने श्रुतिये चडता, ताल रचो ठिक क्रमथी पडता. २१७ मात्रासमकना प्रत्येक चरणमां चच्चार मात्राना चार गण आवेछे, अने तेमांनी सममात्रा तेनी पछीनी मात्रा साथे मळे नहि एवो खास नियम छे, माटे पेहेला स्थानमा चार मात्रानां पांच रूप पैकी जगणवाळु रूप (बीजी त्रीजी मात्रा एकठी थायछे माटे) बाद करतां बाकीनां चार रूप (ss, us, sum) काम लागेछे, ते गण्यां; बीजा स्थानमा उपर लख्या चार गणो पैकी विप्रगण पण काम लागतो नथी, कारण के ते विश्लोकमां लाववानो खास नियम छे-ते लाववाथी विश्लोक थइ जाय-माटे बीजा स्थानमा त्रण रूप (ss,us,st) काममां आवेछे; त्रीजा स्थानमां-नवमी मात्रा लघु आणवानी छे माटे पेहेलो लघु आवे एवास, ज अने विप्रगण पैकी मात्र एक सगणन काम लागेछे, कारण के ज के विप्रगणनुं वासिकामां विधान करेलुं छे, माटे त्रीजा स्थान- रूप एकज; चोथा स्थानने अंते गुरु लाववानो छे, माटे तेवां अंत्य गुरुनां रूप (ss,us) बेन छे, तेथी चोथा स्थानना बे रूप बने; एटले एकंदर ४४३४१४२=२४४२४ =५७६ पूर्वार्द्धनां, तेने उत्तरार्द्धनां तेटलांज रूपे गुणवाथी ५७६४ ५७६=३,३१,७७६ वधां मळीने रूप थायछे. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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