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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवेशक. दग्धाक्षरनो प्रयोग छंदना आद्य भागमा करवाथी नीचे प्रमाणे वर्ण परत्वे फळ थवान केटलाक कविवरो जणाबछे.. कविताना प्रारंभमां ह होय तो हानि करे; झ होय तो झगडो करावे; न होय तो बोर करावे; ख होय तो खलता करावे; भ होय तो भय उपजावे;ध होय तो धननी हानी करावे; अने र होय तो अहित करे. ___नळी केटलाक कविवरो मातृकाक्षरोनां शुभाशुभ फळ नीचे प्रमाणे थवा, केहेछे. ऋ अने ल सिवायना सवळा स्तरो संपत्ति कारक छे; क, ख, ग, घ संपत्करेछे, ङ अपकीर्तिकती छे. च सुख आपछे छ प्रेमनो वधारो करछे. ज मित्रलाभ करावे छे; झ भय उपनावेछे; अ मरण निमजावेळे; ट, ठ दुःख आप छे; ड शोभामां वधारो करछे; ढ शोभा घटाडछे ण श्रम करावेछे, त सुख आपछे; व झबडो करावेळे; द सुख आपछे ध अने न संतोष उपजावेळे; प सुख आपछे फ भय उपजावळे, ब मरण निपजावेछे म केश करातछे म दुःख आपछे य लक्ष्मीनो वधारो करछे ल अने व व्यसनी बनावेछ र दाह पेश करेछे; श शुख आपछेष ह खेद करावछे अने स सुख तथा क्ष समृद्धि आपछे. छंद शास्त्रनो आ पारिभाषिक शब्द छे तेनो अक्षरार्थ "समूह" थायछे; परंतु प्रकृत प्रकरणमा मात्रा अथवा वर्णनो समूह एवे अर्थ ए वारायछे; तेना भेद । छे; मात्रिक गण, अने वर्ण गण. १ वृतरत्नाकरना टीकाकार नारायण प्रभृति. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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