________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०६
रणापंगळ
४७ विपुलाः सर्व रचना आर्या प्रमाणे पण पूर्वार्द्ध अथवा उत्तरार्द्धमां के उभयार्द्धमां त्रण गण एटले बार बार मात्रा उल्लंघीने त्रीजा गणनो शब्द ज्यां पूरो थाय त्यां विराम आवेछे, एटले चोथा के पांचमा गणना ‘अक्षर ग्रहीने त्रीजा मणनो शब्द पूरो थाय ते स्थाने यतिा मणायले.
४+४+४+४+४+ज के विप्र+४+ग=३०
४+४+४+४+४+१ लघु+४+ग=२७ त्रीजा गणकेरो शब्द, ज्यां पूरो थाय त्यां विरति आणो; विपुलाआर्या त्रण जातिनी, बनेले खलं जाणो. ६५ (जेनो कोइ भाम विपुले एटले विस्तारवामां आवे ते विपुला केहेवाय).
१ मुख (आदि) विपुला, २ जघन (अन्त) विपुला अने ३ महा (उभय) विपुला, एवा विपुलाना त्रण भेद थायछे.
४८ मुख (आदि) विपुला. (आदि एटले पूर्वार्द्धना त्रीजा गणनो शब्द ज्यां चोथा गणनी मात्रा ग्रहीने पूरो थाय, त्यां विराम आवेछे माटे आदि विपुला; उत्तरार्द्धमा पथ्या प्रमाणे.)
आदि दले त्रीजा गणकरो, शब्दज पूरो थतां यति छे; आदि विपुला आर्या, रचनो ए रीति कविमति छे. ६६
४९ जघन (अन्त) विपुला. (अन्त एटले उत्तरार्द्धमांना त्रीजा गणनो शब्द चोथा गणनी मात्रा ग्रहीने ज्यां पूरो थाय, त्यां विराम आवेछ, माटे ते अन्तविपुला केहेवायछे. पूर्वार्द्ध पथ्या आर्या प्रमाणे.)
अन्तन दलना त्रीना, गणनो शब्दज जहां पूरो बनशे,. अन्तविपुला आयामां, त्यां यति सुकवि ठिक धरशे. ६५
For Private And Personal Use Only