SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणांगळ, ४५. आर्या-गाथा, गाहा १. ४+४+४+४+४+ज के विप्रगण+४+ग-३०. २. ४+४+४+४+४+ल+४+ग%२७. - प्रथम दलमां १,५,९,१३,१७,२१,२५,२९ मात्राए ताल. द्वितीय दलमा १,५,९,१३,१७,२२,२६,मानाए ताल. पांच डगण पर छट्टो द्विजवर अथवा ज,गण धरो पदमां; तेपर एक डगण करौं, अंते ग करो प्रथम दलमां. ६० बीजुं दल एमज पण, छठे लघु मात्र एक तो धरवो; विषम गणे प्रति दलंमां अवश्य, जगण नहि कदि करवो. ६१ छठ्ठो जो द्विजवर तो प्रथमाक्षर पछौज, विरति, पद करजो; रस मुनि बे गण द्विज तो, रसनी पण अंत पद धरजो.. ६२ बीजा दलमां पंचम द्विजवर तो त्यां थकीज, पद गणजोः । अवर प्रकार बने तो अन्ते, यति पद सहज भणजी. * मागधी छरदातक आदिमां आ नाम छे. केदारकविनो संस्कृत भाषामां रचेलो "वृत्तरत्नाकर' नामे ग्रंथ छे, जेनापर "भावप्रदीपिका' नामनी टीका जनार्दने करी छे, तेमा लखेछे के जेमां विषम अक्षरवाळ पाद (जेवांके ८,१०, ७,९ अक्षरना अथवा ३,६ पादनां) होय ते गाथा केहेवायछे. जेमके मंगल, गीतिका, चेष्टक, विषद्विति, ध्रुवक, चर्चरी, पद्धतिका, कालिका, बल्लितका, द्विपदी, उत्साह, चत्वरी, पदुलिका, द्विपथ, आदि केटलाक एवा छंदोनो ‘एमां संग्रह थायछे माटे ए सर्व संग्रहिणी केहेवायछे. ___ "वृत्तरत्नाकर' अने तेनी नारायणभट्टे करेली टीकामां के छे के, “त्रण, छ, के. दश अथवा . तेथी अधिक जेमां चरण For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy