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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७० www.kobatirth.org रणपिंगळ. जाति विजया विषे, लावजो नेमथी. १७२. छंदः प्रभाकर केहे छे के " चरणने अंते रगण आणवाथी कर्णमधुर लागे - छे,” तेम स्वाभाविक रीते कवितामां पण तेम घणीक वार थइज जाय छे, पण ars afar एव नियम कर्यो नथी, तेथी अमे पण ते ग्रहण कर्यो नथी. ४६ मात्रानी २,९७,१२,१५,०७३ वृप्ति थायछे. १६० मत्तचंचरीक. (वाग्वलंभ प्रमाणे ) १०, १०, १०, १०, ६ यति = ४६ मांत्रा, n Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १, ६, ११, १६, २१, २६, ३१३६, ४१ मात्राएं ताल. दशनों पर दश करी, ते उपर दश धरी, ५ लावजो दश फरी, रस विषे यति करी, प्रति पदमां; एम यति पांच छे, दर चरण मांज छे, तेह संभाळीने, आणजो भाळीने, दर झडमां मत्तचंचरीक तो, एम बन जाति तो, बध कला कुल मळी, थाय छेतालशे, चरण विपे, प्रथम पर एक तो, ताल मूकायछे, पांच चडते पछी, नव सकल ताल तो, चरण दीशे. १७३. १६१. हरिप्रिया. भाषाछंदोमंजरी प्रमाणे. २४, २२ यति=४६ मात्रा. एक उपर पछी छए छए चडते ताल. छैतालिस सकल कला विरति माह बैज भला, चोairyर एक थाय बीजो बावीशे; ताल प्रथम एक कले सात तेर उपर पछी, ओगणीश उपर ते दोड़ी जतो दीशे; पचीश पर फरी रखाय एकत्रिशे दोडी जाय, साडी उपर थाय पछी चुवालीशे: For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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